Narmadapuram Politics : भारतीय जनता पार्टी है ह्यूब्रिस सिंड्रोम का शिकार है, जनता की नब्ज जानने की जरूरत

Narmadapuram Politics: Bharatiya Janata Party is a victim of hubris syndrome, need to know the pulse of the public.

मीडिया को भी साइकोफैंट सिंड्रोम, यानी खुशामद करने वाली आदत

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Narmadapuram Politics : (नर्मदापुरम)। कल हमने कांग्रेस की बीमारी और इलाज के बारे मैं बात की थी। आज हम भाजपा की बीमारी और उसके इलाज के बारे मैं बात करेंगे।

ऐसा नहीं है कि सारी बीमारियां केवल विपक्षी पार्टियों को ही हैं। सत्तारूढ़ बीजेपी भी बीमार दिखती है। वह फिलहाल ह्यूब्रिस सिंड्रोम का शिकार है। यह एक तरह का व्यक्तित्व दोष है जिसमें सत्ता में बैठे व्यक्ति को ये लगता है कि उसे जबरदस्त समर्थन हासिल है और उसे कोई भी कुछ भी करने से रोक नहीं सकता है।
इसकी वजह से बीजेपी को ये लगा कि उसके पास लोकप्रिय जनादेश का लाइसेंस है। वो जैसे  चाहे वैसे जनता को मुद्दों से हटकर बात कह सकती है। जिले में रोजगार, खराब सड़के, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं का अभाव सहित कई बड़े मुद्दों पर जनता को जवाब देना होगा। लेकिन लगातार चुनावी जीत हासिल करने के बाद ह्यूब्रिस सिंड्रोम के मरीजों में तानाशाही प्रवृतियां पल्लवित हो जाती हैं.और इसके बाद वो बेतुक फैसले जल्दबाजी में लेने लगता है और आलोचना या मशविरों को लेकर उसकी नाफरमानी बढ़ जाती है।

ह्यूब्रिस सिंड्रोम का क्या कोई इलाज है? साल 2009 में राजनेता रह चुके मनोवैज्ञानिक डेविड ओवेन ने जोनाथन डेविडसन के साथ ह्यूब्रिस सिंड्रोम पर एक पेपर लिखा।

जोनाथन डेविडसन नॉर्थ कैरोलिना के ड्यूक यूनिवर्सिटी मेडिकल सेंटर के मनोवैज्ञानिक हैं। रिसर्च पेपर में डेविड ओवन ने उम्मीद जताई कि आने वाले कल में मेडिसिन से इसके इलाज का जरिया खोजा जा सकेगा। लेकिन उन्होंने ह्यूब्रिस सिंड्रोम के खतरों को लेकर भी आगाह किया।

उन्होंने कहा, “क्योंकि सत्ता के नशे में चूर राजनेता कई लोगों की जिंदगी पर बुरा असर डाल सकता है। इसलिए ऐसे विचारों का माहौल बनाने की जरूरत है जिसमें नेताओं को अपनी कारगुजारियों को लेकर ज्यादा जिम्मेदार होना चाहिए।”

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source “social media”

निराशा के भंवर में फंसे विपक्ष को मजबूत करके और सवाल पूछने वाली मीडिया को बढ़ावा देना ही इस बीमारी का एकमात्र इलाज है। मीडिया को भी साइकोफैंट सिंड्रोम यानी खुशामद करने वाली आदत से बचना होगा।

लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या सर्वशक्तिमान मरीज ऐसे इलाजों को आजमाने की इजाजत देगा। हाल के दिनों में राजनेता खुद को मसीहा समझने लगे हैं कि उन्होंने सबको बचाने का ठेका ले रखा है। मुमकिन है कि जनता से ठुकराए जाने पर ही इस तरह के नेता और पार्टी बच जाए।

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वामपंथी दलों को कुछ साल पहले इंटेंसिव केयर यूनिट में देखा गया था। उन्हें लिस्ट में शामिल नहीं किया गया है क्योंकि वे अस्पताल में इलाज कराये जाने पर यकीन नहीं करते हैं। उन्हें क्रांतिकारी इलाज चाहिए।

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